शुक्रवार, अप्रैल 02, 2010

कच्ची सब्जी खायेंगे -- सुजान पंडित

गै के दाम में आग लगी है, कैसे इसे बुझाएंगे|
मिलजुल कर हम बच्चों के संग, कच्ची सब्जी खायेंगे||

सप्ताह भर के राशन से महीनों काम चलाता हूँ|
झोली में आता था पहले, हैंग्की में अब लाता हूँ||
थाली-बरतन के बदले अब, कलछुल में थाल सजायेंगे --
मिलजुल कर हम बच्चों के संग, कच्ची सब्जी खायेंगे --

आटा, चावल, दाल, चीनी, जब भी घर में आता है|
त्योहारों सा उत्सव घर का, बच्चा-बूढ़ा मनाता है||
आज का दिन है बड़ा सुहाना, लंच डीनर खायेंगे --
मिलजुल कर हम बच्चों के संग, कच्ची सब्जी खायेंगे --


मेहनत का फल मीठा होता, कभी पढ़ा था बचपन में|
श्रम से ऐसे बदन भिगोता, जैसे भीगे सावन में||
गीता की वाणी पर चलकर, कबतक जी हम पाएंगे --
मिलजुल कर हम बच्चों के संग, कच्ची सब्जी खायेंगे --

प्रकाशित : 2 अप्रैल 2010 - rachanakar.blogspot.com

मंगलवार, मार्च 23, 2010

पद्मश्री से सम्मानित डाo राम दयाल मुंडा को बधाई -- सुजान पंडित


झारखण्ड में दूजे बार आया, पद्मश्री सम्मान |
डाक्टर राम दयाल मुंडा से, बढ़ा देश में मान ||

झारखंडी संगीत का जिसने,  जीवन भर प्रचार किया |
देश-विदेश के आँगन में, एक अलग पहचान दिया ||
क्यों न हो इस उपलब्धि पर, हम सबको अभिमान ---
डाक्टर राम दयाल मुंडा से, बढ़ा देश में मान ---

कला की पूजा को जिसने, ईश आराधन से आँका |
सात सुरों में माँ शारदे,  तालों में शिव को देखा ||
लुझरी, झूमर, डमकच से, किया खुदा का गान ---
डाक्टर राम दयाल मुंडा से, बढ़ा देश में मान ---

पद्मश्री से इस माटी का,  आपने श्रृंगार किया |
लोक कला के जादू से, झारखण्ड का उद्धार किया ||
भुला नहीं सकते जीवन भर, आपका हम ये एहसान ---
डाक्टर राम दयाल मुंडा से, बढ़ा देश में मान ---

महाशिवरात्रि के अवसर पर -- सुजान पंडित



कब आवोगे भोले शंकर, मेरे घर के दर पर |
बीत गयी है सारी उमरिया, जल देते पीपल पर ||

सुना था एक पड़ोसी से, सस्ते में पट जाते हो |
चाह नहीं कुछ लेने की, बस देते ही तुम जाते हो ||
मुझको भी दो चंद आइडिया, कब तक रहें सफ़र पर ---
बीत गयी है सारी उमरिया, जल देते पीपल पर ---

सुबह-सुबह एक बच्चा तेरे नाम का माला जपता है |
पूरी हो जाती इच्छाएँ, जो भी मन में रहता है ||
मैं तुम्हारा भक्त पुराना, लटक रहा हूँ अधर पर ---
बीत गयी है सारी उमरिया, जल देते पीपल पर ---

चाँद, सितारे, वायु, जल, थल, तेरे दम से चलते हैं |
जब तक तेरा ऑर्डर न हो, पत्ते भी नहीं हिलते हैं ||
इतनी शक्ति तुझमें फिर भी, कृपा नहीं क्यों मुझ पर ---
बीत गयी है सारी उमरिया, जल देते पीपल पर ---

आंसू से प्यास बुझाता हूँ - सुजान पंडित



मम्मी गयी स्कूल पढ़ाने,

पापा गए हैं दफ्तर.
मन की बातें किससे बोलूं,
कोई नहीं है घर पर..

टॉफी बिस्कुट डब्बे में है,
डब्बे रैक के ऊपर..
भूख लगी तो हाथ बढ़ाया,
गिरा मुंह के बल पर..

बंद कमरे में रो रोकर,
और घुट घुट कर मैं जीता हूँ.
प्यास लगी तो ऑंसू से,
अपनी प्यास बुझाता हूँ..

मम्मी-पापा के बिना,
कितना मुश्किल है जीना.
बचपन से तो अच्छा है,
पचपन का हो जाना..



प्रकाशित : 22 दिसंबर 2009 - baaludyan.hindyugm.com

सोमवार, मार्च 01, 2010

कौन गाँधी? / व्यंग्य - सुजान पंडित

                इस बार गाँधी जयंती को कुछ अलग ढंग से मनाने का मन में विचार आया. पड़ोस के मैदान में टेंट शामियाना लगाया गया. कुछ फूल और आम की पत्तियों से मंच को सजाया गया. मंच पर तिरंगा भी लगा दिया गया. मेरे एक पेंटर मित्र ने गाँधी जी का पोर्टेट बनाने का जिम्मा भी ले लिया. दोस्तों और आस पड़ोस के लोगों को आमंत्रण पत्र भी भेज दिया गया. लेकिन याद आया की मुख्य अतिथि तो हमने ठीक ही नहीं किया जो दीप प्रज्वलित कर मंच की शोभा बढाएगा. सो दोस्तों के सुझाव पर मुख्य अतिथि के लिए सबसे से पहले एक नेताजी के पास गया. नेताजी अपना पर्सनल प्रॉब्लम बताते हुए कहा - मैं २ ओक्टूबर को मौन ब्रत रखता हूँ. कार्यक्रम में जा तो सकता हूँ पर गाँधी वगैरह पर कुछ बोलूँगा नहीं. बोलने के लिए यदि किसी को रख सकते हो तो मैं तैयार हूँ. सर आप मुख्य अतिथि होंगे तो जनता आप के मुख से कुछ सुनने की चाहत तो जरुर रखेगी. इसपर वो तैयार नहीं हुए और इनडायरेक्ट वे में आने से साफ मना कर दिए.

              मैंने सोचा दूसरे नेताजी से मिला जाय. उन्होंने भी अपनी डायरी देखकर कहा की रात आठ बजे एक फैशन शो के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि जाना है, यह पहले से तय है, अतः आपके कार्यक्रम में शामिल होना संभव नहीं हो पायेगा. मेरे कहने पर की मेरा कार्यक्रम तो सुबह आठ बजे का है, तो उन्होंने सर के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा की नहीं - एक ही दिन में दो कार्यक्रम में जाना संभव नहीं होगा - क्लेश करेगा - अतः किसी और को देखें. 

              मैं एक तीसरे नेताजी के पास यह सोचकर गया की यह तो अभी अभी चुनाव जीतकर नेता बने हैं ये नहीं टालेंगे - जरुर मेरा अनुरोध स्वीकार करेंगे. उन्हें जब गाँधी जयंती के बारे में बताया तो उन्होंने फट से कहा - भैया कौन सा गाँधी. अपने देश में तो कई गाँधी है. मैंने कहा - सर, मोहनदास करमचंद की बात कर रहा हूँ. भई ई मोहनदास कौन है, मैंने तो ये नाम पहले कभी नहीं सुना. देखिये सीधी सी बात है जब मुख्य अतिथि बनावोगे तो कुछो बोलवैबे करोगे ना. भई जिस ब्यक्ति का नाम कभी सुने नहीं हैं, जिनके बारे जानते नहीं उनके बारे बोलेंगे क्या. मेरी सुझाव मानिये और कोनो आइ ए एस, आई पी एस को धरिये, वु सब ठीक से बोल पायेगा, पड़ता लिखता रहता है. मैं मुंह लटकाए नेताजी के द्वार से लौट आया. सोचने लगा किसे पकडा जाय जो मोहनदास करमचंद गाँधी को जनता हो.

             अबकी बार एक सरकारी अफसर के पास गया और उनसे अनुरोध किया. वो तैयार हो गए. लेकिन मुझसे एक भूल हो गई. बातचीत के दौरान मैंने नेताजी की बातें उनसे बता दी, यह सोचकर की बुद्धिजीवी प्राणी है, नेताजी का ओपिनियन सुनकर कुछ कमेन्ट करेगा, लेकिन यह क्या वो तो बात सुनते ही भड़क गए, बोले - अरे साहब जब माननीय नेताजी आने से मना कर दिए हैं तो भला मैं कैसे जाऊँ? मुझे सस्पेंड कराएगा क्या? माफ़ कीजिये किसी और को देखिये.

             मैं परेशान हो गया. समय नहीं था. सुबह आठ बजे गाँधी जयंती का दीप प्रज्जवलित करना है और अभी तक मुख्य अतिथि निश्चित नहीं हुआ. रात भर चिंता से सो ना सका.

               सुबह हुई - कार्यक्रम का समय हो गया. चिंतित मुद्रा में मंच तक यह सोचकर गया की अब जो होगा देखा जायेगा. इतने में पड़ोस का एक भिखारी जो कि लूला था मिल गया, वह भी गाँधी जयंती मनाने आया था. मुझे परेशान देखकर भांप गया - जरुर कुछ गड़बड़ है, वह मेरे सामने आया और कहा - बाबू जी घबराइये नहीं मैं आपका काम आसन कर दूंगा. इतना कहते हुए वह मंच पर चढा और जनता से कहा - मैं कोढ़ी-लूला हूँ - मैं दीप प्रज्ज्वलित तो कर नहीं सकता पर गा सकता हूँ - और वह अपनी सुरीली आवाज़ में गाने लगा - वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाने रे ---- इनका गाना सुनते ही सारी जनता खड़ी हो गयी और गाँधी जी के पोर्टेट पर पंक्ति से फूलों का माल्यार्पण करने लगी.

            तभी अचानक एक गर्जन हुआ - और इसी बीच मंच पर गाँधी जी स्वयं परदर्शित हुए. जनता किं कर्तब्य बिमुड हो खड़ी की खड़ी ताकती रही. गाँधी जी ने बहुत शांत स्वरों में कहा - भाइयों एवं बहनों - आज मैं बहुत खुश हूँ. वर्षो से मैं अपनी जयंती देखता आ रहा हूँ और शर्मिंदगी महसूस करता आ रहा हूँ, पर आपने आज मझे सच्ची श्रद्धांजलि दी है. उन्होंने नाराज होकर आगे कहा इस देश ने मेरी तस्बीर डाक टिकट पर छाप दी है, नोटों पर छाप दी है और तो और मेरे जन्म दिन पर पशु-पक्छियों की हत्या बंद करने की एलान कर दी है लेकिन मैंने देखा फिर दूसरे दिन से पुनः हत्याएं होने लगती हैं. क्या सत्य अहिंसा का नारा सिर्फ २ अक्टूबर के लिये मैंने दी थी. क्या नकली नोटों और डाक टिकटों पर अपनी तस्बीर देखने के लिए ही मेरी जन्म हुई थी. अब आप लोगों से अनुरोध है २ अक्टूबर को छुट्टी न मनाएं. आप लोग काम काज करें तथा मेरी जयंती मनाकर समय की बर्बादी न करें और मुझे भी चैन से रहने दें. मैं यह आडम्बर देख देख कर थक गया हूँ - धन्यवाद्.

             इतना कहते हुए गाँधी जी मंच से ओझल हो गए. जनता और मैं उसी समय प्रण कर लिया कि अगले वर्ष गाँधी जयंती फिर आएगी - उस दिन गाँधी जी कि बात जरुर याद रखूँगा. लेकिन फिर सोचने लगा - क्या देश मानेगी? 

प्रकाशित : २ अक्टूबर २००९ - rachanakar.blogspot.com

मुझे भी देवी सरस्वती मिली थीं / व्यंग्य -- सुजान पंडित


हर रोज की तरह एक दिन मैं सितार पर रियाज कर रहा था कि अचानक मेरे सामने देवी सरस्वती पधारीं। मैं पहले तो अचम्भित हुआ फिर झुककर प्रणाम किया। 
उन्होंने मुस्कुराते हुए आशीर्वाद दिया और कहा - तुम कलाकार हो - तुम्हारी तो काफी जान-पहचान है - मुझे भी जरा इन सबसे मिलवाओ। मैंने सोचा - मेरी जान-पहचान तो पुलिस वालों से लेकर गुन्डों तक तथा नेता से लेकर उनके चमचों तक है। 
माँ तो विद्यादायिनी है, क्यों न इन्हें विद्या के धरोहरों से साक्षात्कार करवाया जाय। 
सो अपनी बाइक में टंकी फुल कर उन्हें पीछे बिठा लिया और चल पड़ा। रास्ते में कुछ बच्चों को एक जगह एकत्रित होकर ताश की पत्तियाँ फेंटते देख माँ ने बाइक रूकवा दिया और पूछने लगी - 
ये बच्चे यहाँ क्या कर रहे हैं।
माँ यह विद्यालय है - सरकारी विद्यालय।
विद्यालय ? माँ ने आश्चर्यचकित हो पूछा यहाँ तो शिष्यगण हैं पर कोई गुरू ही नहीं - 
ये बच्चे कैसे ज्ञान अर्जन करेंगे ?
माँ - आज सभी गुरू हड़ताल पर हैं। इसीलिए शिष्य तो आये हैं पर गुरू नहीं।
चलिए आगे चलें -
यह महोदय क्या बेच रहे हैं ? माँ ये शिक्षक है - प्रमाण-पत्र बेच रहे हैं।
असफल विद्यार्थियों का उद्धार करते हैं - बड़े दयालु हैं - बेचारे।
उस लाल भवन में किस बात की भीड़ है ? माँ ने डरते-डरते पूछा ।
माँ यह विश्वविद्यालय है। यहाँ सभी विद्या के बड़े-बड़े रहनुमा रहते हैं। गुरू और शिष्य दोनों अपनी-अपनी मांगे माँग रहे हैं,  इसीलिए यहाँ हल्ला हो रहा है। 
आप मत डरिए - आपका कुछ नहीं होगा - आपको यहाँ कोई नहीं जानता।
उधर भी भीड़ - वहाँ मैदान में क्या हो रहा है ? माँ भयभीत हो गयी थी ।
माँ वहाँ कान्वोकेशन हो रहा है मैंने तुरन्त जोर देकर कहा ।
यह कान्वोकेशन क्या होता है ? माँ का गला रूंघ गया था ।
जो विद्या पूर्ण कर लेते हैं उन्हें प्रमाण-पत्र दिया जाता है। इसी के जरिए उन्हें मान-सम्मान, नौकरी-चाकरी तथा विद्यालयों में गुरू का पद मिलता है।
वह खादीधारी टोपी वाला आज का मुख्य-अतिथि है। इन्हीं के कर कमलों द्वारा प्रमाण-पत्र दिए जा रहे हैं।
तब तो इस खादीधारी के पास बहुत बड़ी डिग्री होगी ? माँ ने गम्भीरतापूर्वक पूछा ।
नहीं माँ यह तो मंत्री है। यहाँ का सबसे बड़ा आदमी है। ऐसे इन्होंने सिर्फ आठवीं दर्जा तक ही विद्या अर्जन किया है।
इतना सुनते ही माँ गुस्से में लाल हो गयी और मुझ पर बरस पड़ी। तुम झूठे हो - दो तरह की बातें करते हो। एक तरफ कहते हो इसी डिग्री के जरिए इन डिग्रीधारियों को पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान मिलेगा। फिर दूसरी तरफ कहते हो इस मंत्री के पास कोई डिग्री नहीं। भला इतना बड़ा पद, इतना सम्मान इन्हें कैसे मिला ?
हटो-हटो मुझे जाने दो - मैं सब कुछ समझ गयी।
मैं माँ-माँ चिल्लाता रहा, और वह मेरे सामने से ओझल हो गयी।

प्रकाशित : १२ फ़रवरी २००८ - rachanakar.blogspot.com / 
                                 Daynik Ranchi Express (Ranchi)

मौसम सुहाना आया रे -- सुजान पंडित

मौसम सुहाना आया रे-
पूनम का चंदा नीले गगन पर,
दूल्हन सा रूप लाया रे--

१) छेड़े मुरली की तान कोई बन में।
गाए कोयलिया सप्त सुरन में॥
कली कुसुम महक उठे, पंक्षी भी चहक उठे,
फूलों में रंग आया रे--
मौसम सुहाना आया रे-

२) देखो तारों की रात गा रही है।
चांदनी भी तो मुसका रही है॥
बरखा बहार लिए, सोलह श्रृंगार किए
श्रृतुओं का राजा आया रे--
मौसम सुहाना आया रे-

प्रकाशित : २९ सितम्बर २००७ - rachanakar.blogspot.com/
                Sangeet Monthly Magazine (Hathras)

पंद्रह अगस्त आया -- सुजान पंडित

पंद्रह अगस्त आया, जन गण मन मुसकाया।
नील गगन पर तीन रंग का विजय ध्वज लहराया॥

१) घर घर में हर आंगन में, सूरज किरण बिखेरा।
जुल्मों के अंधेरेपन में, आया नया सवेरा॥
मिलकर दसों दिशाएं सबसे पहले शीश झुकाया-
नील गगन पर--

२) आज यहां न कोई हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई।
सब है भारत मां के बेटे सब है भाई-भाई॥
कोई न अपना कोई पराया सबको गले लगाया-
नील गगन पर--

३) समता और स्वतंत्रता का आदर्श हमें सुहाया।
जीयो जीने दो की कसमें सबने मिलकर खाया॥
जनगण मन अधिनायक जय हे, का त्योहार है आया-
नील गगन पर--
प्रकाशित : २९ सितम्बर २००७ - rachanakar.blogspot.com

सरगम गीत -- सुजान पंडित

म, से मंदिर, म, से मस्जिद, ग, से गिरजा, गुरुद्वारा।
सात स्वरों में छुपा हुआ है, आपस का भाईचारा॥

१) सा, सिखलाता है सबको, सबका ईश्वर एक है।
रे, कहता है रे मनवा, राम-रहिमन एक है॥
ग, की वाणी है अनमोल, ज्ञान की आंखें अपनी खोल,
म से मंदिर म से मस्जिद ---

२) प, के स्वर में प्यार बसा है, प्यार इबादत प्यार है पूजा।
ध, है सब धर्मों की धरती, नाम अलग है न कोई दूजा॥
नि, का निश्छल निर्झर तानें, कहता जय जय हिन्दुस्तान।
शत् शत् हो तुझको परनाम, शत् शत् तुझको हो परनाम,
म, से मंदिर, म, से मस्जिद ---

प्रकाशित  : २९ सितम्बर २००७ - rachanakar.blogspot.com 

मेरी चिट्ठी तेरे नाम -- सुजान पंडित

चलो चलें हम बाटें, चिट्ठी एकता की।
मिलकर बाटें चिट्ठी हम सब एकता की।
मेरी चिट्ठी तेरे नाम, हिन्द के लोगों तुम्हें प्रणाम--

१) मेरा न कोई मंदिर मस्जिद, न गिरजा गरुद्वारा।
हम हैं एक खुदा के बंदे, एक है अपना नारा॥
चलो चलें हम बाटें--

२) पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, चारों दिशाएं अपनी है।
हिन्द का कोना कोना अपना, सब भाषाएं अपनी है॥
चलो चलें हम बाटें--

३) इस चिट्ठी में लिखी हुई है, विश्व शांति का संदेशा।
सारे विश्व के घर आंगन में, जोत जले भाई चारे का॥
चलो चलें हम बाटें--

प्रकाशित : २९ सितम्बर २००७ - rachanakar.blogspot.com

सदभावना गीत -- सुजान पंडित

बेला, गुलाब, जुही, चम्पा, चमेली।
नाम अलग पर हम है सहेली॥
भारतीय - हम है भारतीय --

1) मंदिर में सजते हम मस्जिद में सजते|
गिरजा-गुरुद्वारा के बेदी में चढ़ते |।
अपना न जात-पात, धर्म न मजहब।
माला बन सारे देवों पे सजते॥
भारतीय - हम है भारतीय ---

2) ईद, दिवाली हम मिलकर मनाते।
प्यार-मोहब्बत का पाठ पढ़ाते॥
लड़ना-झगड़ना न सीखा कभी हम।
धागे में मिलकर हम जीना सिखाते॥
भारतीय - हम है भारतीय ---

प्रकाशित : २९ सितम्बर २००७ - rachanakar.blogspot.com



आज का दिन है चौदह नवंबर -- सुजान पंडित


आज का दिन है चौदह नवंबर, आज का दिन है बड़ा महान।
आज के दिन ही पैदा हुए हैं, लाल जवाहर जिनका नाम॥

1- बच्चों के थे चाचा नेहरू, भारत माँ के नेक सपूत।
सत्य-अहिंसा के थे पुजारी, सारे विश्व के शांति दूत॥
शीश उठाए जिनके पथ पर, बढ़ता जा रहा हिन्दुस्तान---

2- गीता, बाइबिल, गुरुग्रंथ, कुरआन के थे वे अनुयायी।
मजहब के दीवारों में जिनकी, नीति कभी न सिमट पायी॥
जात-पात का भेद न रखते, ऐसे थे वे एक इन्सान ---

3- गांधी जी के परम उपासक, गांधीवादी के थे चिन्तक।
विश्व-प्रेम की गाथा जग में, फैलाए दे देकर दस्तक॥
नाम अमर रहेगा जब तक, होंगे धरती आसमान ---

प्रकाशित : ८ नवम्बर २००७ - rachanakar.blogspot.com

संयुक्त परिवार - सुजान पंडित


एक हमारा घर है जिसमें प्यार भरा है बेशुमार।
दादी-दादी, मात-पिता, भाई-बहनों में है दुलार॥
कभी न लड़ते, न झगड़ते, ममता का है ये भंडार ---

1- वक्त बुरे जब सामने आए।
सब मिलजुल कर उसे भगाए॥
दुख का बादल घिर न पाए,
सुख का मौसम खुशियाँ लाए॥
बड़े बुजुर्गों के साए में, होता सबका है उद्धार ---

2- एक काठी तोड़ दे कोई।
गठरी लेकिन तोड़ न पाए॥
संयुक्त परिवार के आगे,
जोर किसी का चल न पाए॥
ऐसे घर को मंदिर कहते, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वार ---

3- अलग-अलग जो घर बसे तो|
रिश्तों में दीवार खड़े हो।|
सर से सबके साए हटे और,
भीड़ में निर्जन खड़े हो॥
कोई न अपना, सभी पराया, खुले स्वार्थ के द्वार ---

प्रकाशित : ८ नवम्बर २००७ - rachanakar.blogspot.com


जलाए प्रेम के दीए -- सुजान पंडित

निकल पड़े हैं झूमके, खुशी का कारवाँ लिए।
नगर-नगर, डगर-डगर, जलाए प्रेम के दीए॥
 

1- कश्मीर की ये वादियाँ, दिलों पे सबके छा रही।
मैसुर की सुहानी शाम, ग़मों को यूँ भुला रही॥
जहां भी देखो हर दिशा, बहार ही बहार है।
मुक्त कंठ से यहाँ की, पक्षियाँ भी गा रही।
छनन-छनन मयूर नाच कर समां सजा रहे--
नगर-नगर, डगर-डगर, जलाए प्रेम के दीए॥

2- ताजमहल, लालकिला, अजन्ता की बहार है।
गंगा, यमुना, कृष्णा, डलझील की शुमार है॥
टेरेसा सेवा आश्रम, मज़ार औलिया का है।
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तां का प्यार है।
जात-पात, भाषा-भाषी, सबसे दिल मिला रहे--
नगर-नगर, डगर-डगर, जलाए प्रेम के दीए॥


3- लताओं, वृक्ष, झुरमुटों का मस्त होके झूमना।
कली के होंट को भ्रमर का बार-बार चूमना॥
सदाएं मीठी झरनों की है, तालियाँ बजा रही॥
सारे वन प्राणियों का, मुक्त होके घूमना॥
सुजान पर्यटन की घड़ी दिल में यूं सजा रहे॥
नगर-नगर, डगर-डगर, जलाए प्रेम के दीए॥

प्रकाशित : 8 नवम्बर 2007 - rachanakar.blogspot.com

प्यारा मेरा वतन है -- सुजान पंडित


सोने की ये धरा है, चांदी का ये गगन है।
मोती से फूल इसके, कितना हसीं चमन है॥
सारे जहाँ से सुंदर प्यारा मेरा वतन है --
प्यारा मेरा वतन है --

1- इसके सुबह सुहाने, संध्या है इसकी प्यारी।
मौसम है खुशनुमा जो देता नई जवानी॥
हर ओर ताजगी है, कण-कण में मस्तियाँ है।
चेहरे पे ज़िन्दगी की, चढ़ता है शोख पानी||
पंक्षी भी गा रही है, हर पल नया सुरन है ---
मोती से फूल इसके, कितना हसीं चमन है ---

2- पूरब में बंग हंसता हुआ टैगोर का है।
पश्चिम में रंग खिलता हुआ मेवाड़ का है ||
उत्तर में वादियाँ है कश्मीर की सुहानी।
दक्खिन में ढंग सजता हुआ मद्रास का है||
दामन में जिसके बहते गंगा और जमन है---
मोती से फूल इसके, कितना हसीं चमन है ---



3- नेहरू की है ये धरती, गांधी का ये चमन है।
इंदिरा की है ये बस्ती, सुभाष का सपन है॥
मोती, तिलक, बहादुर, लक्ष्मी, भगतसिंह है|
होकर शहीद पाए आजाद ये वतन है||
मिलकर रखेंगे इसके सुजान चैन-अमन है---
मोती से फूल इसके, कितना हसीं चमन है ---


प्रकाशित : ८ नवम्बर २००७ - rachanakar.blogspot.com

प्यारा वतन हमारा -- सुजान पंडित


ये है चमन हमारा - हमारा, ये है वतन हमारा।
इसके जल, थल, नभ, वन, पर्वत, सब है न्यारा-न्यारा॥
इसपे अपना तन मन वारो, ये प्राणों से प्यारा--

1- गंगा, यमुना, कृष्णा, कावेरी, सबका है ये नारा।

   मिलकर रहना सीखो, चाहे अलग-अलग है धारा॥
   प्रांत-प्रांत में, नगर-डगर में, फैलाओ भाईचारा ---
   प्यारा वतन हमारा ---

2- जात-पात और मजहब से कुछ लेना न देना।
   एक खुदा के बंदे हैं हम, सीखा एक पे रमना॥
   हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सबका यही है नारा --
   प्यारा वतन हमारा ---


3- नहीं चाहिए मंदिर, मस्जिद, गिरजा और गुरुद्वारा।
   हमें चाहिए एक मकां जिसमें हो सबका बसेरा॥
   सुजान भले हो राम, रहीमन, जोसफ और सरदारा --
   प्यारा वतन हमारा -- 


प्रकाशित : ८ नवम्बर २००७ - rachanakar.blogspot.com

वृक्ष गान -- सुजान पंडित


चलो साथियों मिलजुल कर हम वृक्ष लगाएंगे।
पर्यावरण का दुनिया में अभियान चलाएंगे॥

1- वृक्ष हमारा मात-पिता और वृक्ष ही भाई-बहनें हैं।
   वृक्ष ही सबके सच्चे साथी, वृक्ष ही सबके अपने है।|
   इसके हर डाली से हम, धरती को सजाएंगे---
   पर्यावरण का दुनिया में अभियान चलाएंगे---

2- वृक्ष ही इस धरती का दिल है वृक्ष ही इसकी धड़कन है।
    वृक्ष नहीं तो कुछ भी नहीं, श्मशान सारा उपवन है।
    इस संजीवनी बूटी को कटने से बचाएंगे ---
    पर्यावरण का दुनिया में अभियान चलाएंगे---

3- आओ मिलकर करें प्रतिज्ञा, प्रहरी बनेंगे वृक्षों की।
    सदा रहेंगे मेरे इसको नज़र पड़े न भक्षों की॥
    इसके प्राणों की ख़ातिर हम प्राण गवाएंगे ---
    पर्यावरण का दुनिया में अभियान चलाएंगे---
प्रकाशित : ८ नवम्बर २००७ - rachanakar.blogapot.com

माँ शारदे शरमा गयी -- सुजान पंडित

आज अचानक धरती पर, माँ शारदे आ गयी |
पंडालों में अपनी पूजा, देख के खुद शरमा गयी ||

गली-गली में लाउडस्पीकर, चोली के पीछे सुना रहा |
धुन पर मस्त मगन हो लड़के, लकवा डांस दिखा रहा ||
ऐसे भक्तों की भक्ति से, देवी माँ कुम्हला गयी ----
पंडालों में अपनी पूजा, देख के खुद शरमा गयी ----

घर-घर से चंदे की उगाही, करके देवी लाये हैं |
मंहगाई चाहे हो जितनी, सस्ते में निपटाए हैं ||
पूजा सफल हुई विद्या की, बोनस में लक्ष्मी आ गयी ---
पंडालों में अपनी पूजा, देख के खुद शरमा गयी ----

राग-रागिनी लंगड़ी हो गयी, ताल हो गए अंधे |
वीणा मौन खड़ी है उनके, सरगम हो गए गंदे ||
कला की देवी की अस्मत, अपनों के बीच लुटा गयी ---
पंडालों में अपनी पूजा, देख के खुद शरमा गयी ---
प्रकाशित : १९ जनवरी २०१० - rachanakar.blogspot.com

छब्बीस जनवरी का त्यौहार -- सुजान पंडित

छब्बीस जनवरी का त्यौहार फिर से आया रे |
मैली कुरसी में नूतन, कवर चढ़ाया रे ||

चौराहों पर सुबह सुबह, फ़िल्मी गाने बजने लगे |
खादी की टोपी कुरता से, नेताजी सजने लगे ||
पिछले भाषण के पन्ने में पैच लगाया रे ---
मैली कुरसी में नूतन, कवर चढ़ाया रे ---

गुडमोर्निंग नहीं आज बोलना, जयहिन्द से विश करना है |
असली चेहरा छुपा रहे, रंग में ऐसे रंगना है ||
नौटंकी के मंझे खिलाडी, जन-गण गाया रे ---
मैली कुरसी में नूतन, कवर चढ़ाया रे ---

तिरसठ साल से सुपर पवार के कैसेट बजाते हैं |
झंडे बेच के कुछ बच्चे, रोटी आज भी खाते हैं ||
ख्वाबों में जीने वालों ने ख्वाब सजाया रे ---
मैली कुरसी में नूतन, कवर चढ़ाया रे ---
प्रकाशित : २६ जनवरी २०१० - rachanakar.blogspot.com

कुरसी की लीला -- सुजान पंडित


दो एकम दो, दो दूनी चार| 
कुरसी की लीला अपरम्पार||
दो तीया छः, दो चौके आठ| 
कुरसी बना दे धन सम्राट||
दो पंचे दस, दो छके बारह| 
कुरसी चमकाए किस्मत का तारा||
दो सते चौदह, दो अठे सोलह|
कुरसी बिगाड़े नीयत औ चोल||
दो नवें अठारह, दो दहायं बीस| 
कुरसी दिलवा दे बैंक स्विस||
प्रकाशित: ६ नवम्बर २००९ - rachanakar.blogspot.com 
 

रविवार, फ़रवरी 28, 2010

कुरसी हो गयी मैली -- सुजान पंडित


यारों फिर से सावन आया, सोच समझ कर बोना है|
कुरसी हो गयी मैली उसको गंगाजल से धोना है||
१. तन पर होंगे खादी, बोली मिस्री सी होगी मीठी| 
शुभचिंतक बन साथ रहेंगे, जब तक कुरसी नहीं मिलती|| 
जौहरी बनकर चुनना होगा, हमको खांटी सोना है ---
यारों फिर से सावन आया, सोच समझ कर बोना है ---
२. जेपी, लोहिया, मौलाना का रूप सजाकर आयेंगे| 
उनके उपदेशों की सीडी, रिमिक्स कर बजवाएंगे||
लेकिन इन बहुरूपियों पर हम सबको फ़िदा न होना है--- 
यारों फिर से सावन आया, सोच समझ कर बोना है---
3. होशियारी हो अब इतनी कि, शाख पे उल्लू न बैठे|
देख चुके अंजामें गुलिस्ताँ, फिर से गुलों को न लूटे||
पाक साफ माली से अपने गुलशन को संजोना है --- 
यारों फिर से सावन आया, सोच समझ कर बोना है ---
प्रकाशित : ३१ अक्टूबर २००९ - rachanakar.blogspot.com

सुनलो नेहरु चाचा -- सुजान पंडित


भेज रहा हूँ तुमको ईमेल, सुनलो नेहरु चाचा|
बहुत जरुरत है तुम्हारी, हम बच्चों को चाचा||

१) तुमने कहा था बच्चे कल के भारत की तस्वीर है|
होगा नया सवेरा इनसे जागेगा तक़दीर है||
लेकिन हम तो ठगे गए तुम झूठे हो गए चाचा ---
बहुत जरुरत है तुम्हारी, हम बच्चों को चाचा ---

२) कुरसी तुम्हरी बन गयी है आज म्यूजिकल चेयर|
टोपी कुर्ता खादी के पर कोई नहीं है फेयर||
शर्म आती है कहने में अब चाचा को भी चाचा ---
बहुत जरुरत है तुम्हारी, हम बच्चों को चाचा ---

३) एक बार तुम आओ या हम बच्चों को बुलालो|
भटक रहे हैं अपने पथ से तुम ही हमें सम्हालो||
पुस्तक बैग में है लेकिन पॉकेट में गोली चाचा ---
बहुत जरुरत है तुम्हारी, हम बच्चों को चाचा ---

प्रकाशित : १४ नवम्बर २००९ - rachanakar.blogspot.com

झारखण्ड के गहने -- सुजान पंडित


भ्रष्टाचार के है क्या कहने|
झारखण्ड के ये बन गए गहने||

१) मंत्री संतरी दोनों मिलकर|
टेबुल नीचे खाते छुपकर||
लो़कर ही दोनों के सपने ---
भ्रष्टाचार के है क्या कहने ---

२) दस बरस की बाली उमरिया|
नेता अफसर भर ली गगरिया||
बने अरबपति खाकपति थे जितने ---
भ्रष्टाचार के है क्या कहने ---

३) राज्य में क्या कोई कृष्ण आएगा|
इन कंसों को मार गिराएगा||
होंगे जरुर हरिश्चंद्र चमन में ---
भ्रष्टाचार के है क्या कहने ---

प्रकाशित : १८ नवम्बर २००९ - rachanakar.blogspot.com

ऐ बिरसा मुंडा भगवान --सुजान पंडित

सुन कर मत घबरा जाना तुम, ऐ बिरसा मुंडा भगवान| 
तेरा झारखण्ड मरणासन्न है, भेज रहा हूँ ये पैगाम||
तुने जो देखे थे सपने, उसमें लग गए कीड़े फफुंदी| 
नेता अफसर मिलकर सारे उनको डीनर लंच करा दी|| 
राज्य को हो गया फ़ूडपोइजिनिंग, और खुद हो गए पहलवान --- 
सुन कर मत घबरा जाना तुम, ऐ बिरसा मुंडा भगवान ---
तेरे आदर्श दफ्न हो गए, तेरे ही संग मरघट में| 
औपचारिकताएँ बस दिखती, है सरकारी शिलापट में|| 
नामकरण शत् शत् करके, दिखलाते हम बिरसा संतान --- 
सुन कर मत घबरा जाना तुम, ऐ बिरसा मुंडा भगवान ---
तेरी प्रतिमा से दो कौवे, यह कहकर उड़ जाते हैं| 
सारे तंत्र ही गंदे है, हम साफ नहीं कर पाते हैं|| 
बिरसा चल किसी और प्रान्त में, यहाँ नहीं तेरा सम्मान --- 
सुन कर मत घबरा जाना तुम, ऐ बिरसा मुंडा भगवान ---
प्रकाशित : १५ नवम्बर २००९ - rachanakar.blogspot.com

दीपावली में अबकी बार -- सुजान पंडित



 दीपावली में अबकी बार, बात नयी कर जायेंगे|
एक गरीब के आंगन में, जाकर दीप जलाएंगे||

१. पकवानों से सजी सजाई, रखी मेज पर थालियाँ|
कुछ खाते कुछ खा जाती, पास पड़ोस की बिल्लियाँ||
जिनके घर में खाली बरतन, उनका थाल सजायेंगे ---
एक गरीब के आंगन में, जाकर दीप जलाएंगे ---

२. धनतेरस में मन था अपना, गाड़ी बंगला लेने का|
शुभदिन है लक्ष्मी माता को अपने घर बुलाने का||
तज के मन की आकंक्छा को,  एक चूता छप्पर छानेंगे ---
एक गरीब के आंगन में, जाकर दीप जलाएंगे ---

3. आतिशबाजी की धम धम से, गूंज रहा है घर आंगन|
जगमग दीप जला है ऐसे, धरती बन गयी नील गगन||
काली रातें हैं जिनके घर, उनको चाँद दिखाएंगे---
एक गरीब के आंगन में, जाकर दीप जलाएंगे ---

प्रकाशित : १५ अक्तूबर २००९ - rachanakar.blogspot.com / Prabhat Khabar, Ranchi

लुट गई सब्जी की झोली - सुजान पंडित


ऐसी खबर छपी है मौला, आज के अख़बार में. 
लुट गई सब्जी की झोली, एक बच्चे की बाज़ार में..
आलू, गोभी, परबल, भिन्डी, सौ-सौ ग्राम था झोली में. 
मन में ख़ुशी, आँखों में चमक, रस भरा था उसकी बोली में. 
माँ खड़ी थी चूल्हा जलाये, बेटे के इंतज़ार में ----- 
लुट गई सब्जी की झोली, एक बच्चे की बाज़ार में-----
सारे शहर में चर्चे हो गए, सब्जियों के लुट जाने की. 
बीमा वाले घर घर पहुंचे, नींद उड़ गई थाने की. 
आलू प्याज हो जिनके घर, वो ताले जड़ दिए द्वार में---- 
लुट गई सब्जी की झोली, एक बच्चे की बाज़ार में----
सोने-चाँदी का क्या कहना, प्याज रखते लॉकर में. 
रात जागकर सोते जिस दिन, सब्जी आती है घर में. 
पास पड़ोस से डर लगता, कुछ मांग न ले उधार में---- 
लुट गई सब्जी की झोली, एक बच्चे की बाज़ार में--
प्रकाशित : २६ अक्टूबर २००९ - rachanakar.blogspot.com